में तो उण रे सन्तो रो कहिजूँ दास,
जिन्होंने मन मार लिया। टेर
मन मारया तन वश किया जी,
करी भरमाना दूर।
बाहर तो कुछ दिखत नाही,
अंदर झलके वारे नूर।। 1 ।।
जिन्होंने मन मार लिया
मैं तो उन सन्तो रो …............. टेर
आपा मार जगत में बैठा
नहीं किसी से काम।
उण में तो कुछ अंतर नाही,
संत कहो जी चाहे राम।। 2 ।।
जिन्होंने मन मार लिया
मैं तो उन सन्तो रो …............. टेर
प्याला पिया प्रेम का जी,
छोड्या जग का मोह।
म्हाने सतगुरु ऐसा मिलिया,
सहजा ही मुक्ति होय।। 3 ।।
जिन्होंने मन मार लिया
मैं तो उन सन्तो रो …............. टेर
नरसी जी रा सिमरथ सामी,
दिया अमी रस पाय।
एक बून्द सागर में रळगी,
क्या करे रें यमराज।। 4 ।।
जिन्होंने मन मार लिया
मैं तो उन सन्तो रो …............. टेर
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