राजस्थानी गुरु महिमा भजन
दोहा - सतगुरु बिना सोझी नहीं, सोझी सब घट माय।
रज्जब मक्की रा खेत री, चिड़ियां ने गम नाय।।
टेर - बंधन काट किया निज मुक्ता, सारी विपदा निवारी,
जाऊँ म्हारा सतगुरु ने बलिहारी।।
वाणी सुणत प्रेम सुख उपज्या, दुर्मति गयी हमारी।।
भरम करम रा साँचा मेटिया, दीना कपाट उघाड़ी।।1।।
जाऊं म्हारा सतगुरु ने .............. टेर
माया ब्रह्म रा भेद समझाया, सोहम लिया विचारी।
आद पुरुष घट भीतर देखिया, दुविधा दूर विदारी।।2।।
जाऊं म्हारा सतगुरु ने .............. टेर
दया करी म्हारा सतगुरु दाता, अबके लिया उबारी।
भव सागर सूं डूबत तारयो, एड़ा पर उपकारी।।3।।
जाऊं म्हारा सतगुरु ने .............. टेर
गुरु दादू रे चरण कमल पर, मेलू शीश उतारी।
और भेंट क्या कर राखूं, सुन्दर भेंट तुम्हारी।।4।।
जाऊं म्हारा सतगुरु ने .............. टेर