संतो री गति न्यारी रे, संतो री गति न्यारी जग में।
जप तब नेम व्रत और पूजा प्रेम सभी से भरी ।। टेर ।।
जाती वर्ण हरि राखी वे तो, गणिका ने क्यों तारी रे ।
शिवरी जात री भीलनी कहिजे कुटिल कुल नारी ॥ 1 ।।
संतो री गति न्यारी जग में ............ टेर
जात जलावो नाम कबीरो, भाया करी कलाली ।
वण वणजारो बालद ले आयो, आपो आप मुरारी ॥ 2 ।।
संतो री गति न्यारी जग में ............ टेर
धना भगत ओर कालू सेना, नामो नाम हजारी रे ।
कर्मा जाटणीमीरा बाई, कई हो गया भव से पारी ॥ 3।।
संतो री गति न्यारी जग में ............ टेर
पांचो पांडवो यग रसायो, सब मिल करी तैयारी रे ।
वाल्मीकि विन काज न सरियो, बाजियों संख सुजारी ॥ 4 ।।
संतो री गति न्यारी जग में ............ टेर
वेद पुराण भागवत गीता, सब मिल आई पुकारी।
केह सुखदेव सुणो गुरूदाता, काज किना रे मुरारी ॥ 5 ।।
संतो री गति न्यारी जग में ............ टेर
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